102 वन हॉर्न्ड गैंडों को पिछले दस वर्षों में देशभर में मार दिया गया

नॉएडा – शहर के युवा समाजसेवी एवं अधिवक्ता श्री रंजन तोमर द्वारा वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो में लगाई गई  कई आर टी आई से देश विदेश में पर्यावरण और शिकार से शेरों और हाथियों को हो रहे नुक्सान की बात चर्चा में है , इस कड़ी में नया खुलासा हुआ है जिसके तहत एक सींघ वाले गैंडों की जानकारी श्री तोमर ने मांगी थी।
भारतीय गैण्डा, जिसे एक सींग वाला गैण्डा भी कहते हैं, विश्व का चौथा सबसे बड़ा जलचर जीव है। आज यह जीव अपने आवासीय क्षेत्र के घट जाने से संकटग्रस्त हो गया है। यह पूर्वोत्तर भारत के असम और नेपाल की तराई के कुछ संरक्षित इलाकों में पाया जाता है जहाँ इसकी संख्या हिमालय की तलहटी में नदियों वाले वन्यक्षेत्रों तक सीमित है.
आर टी  आई के जवाब  में ब्यूरो कहता है के पिछले दस वर्षों में देश भर में 102 गैंडे मार दिए गए हैं , यह इसलिए दुःख का विषय है के 18वीं शताब्दी में देश भर में इन गैंडो की जनसंख्याव जनसँख्या 200 के करीब रह गई थी , जो अब कुछ बढ़ चुकी है।
जो बड़ी बातें इस आर टी आई से सामने आई हैं उसमें असम , उत्तर प्रदेश एवं पश्चिम बंगाल में यह मौतें हुई हैं , जिसमें सबसे  असम जिसमें 2013  में सबसे ज़्यादा  21  गैंडो को मार दिया गया जबकि 2014 में यह आंकड़ा 20 रहा, उत्तर प्रदेश में इन दस सालों में एक गैंडे को मारा गया जबकि पश्चिम बंगाल में 17 गैंडो को मारा गया। 
 
इन बातों से कई सवाल उठते हैं असम में सबसे ज़्यादा गैंडो को मारा गया है जो चिंताजनक है , यहाँ की प्रदेश सरकारों को एवं केंद्र सरकारों को भी इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए और कड़े निर्देश देने चाहिए। 
दूसरी बात यह के देश में गैंडो का क्षेत्रफल कम होता जा रहा है , अब यह मात्र तीन या चार राज्यों तक सीमित हो गया है जो पहले पूरे उत्तर भारत में हुआ करता था , जो एक बार फिर चिंता का विषय है।  
 
कुछ हद तक इस बात का संतोष ज़रूर किआ जा सकता है के 2013 एवं 2014 में 22 गैंडे प्रतिवर्ष खो देने के बाद इनके मारे जाने में कुछ कमी ज़रूर आई है किन्तु यह पर्यावरणविदों के लिए कोई बड़ी ख़ुशी की बात नहीं है।  

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