मजबूत इच्छाशक्ति के बगैर कोरोना की लड़ाई अधूरी: डॉक्टर प्रेम कुमार

पटना:  उचित शारीरिक दूरी , मास्क ,हाथों के नियमित सफाई , कोरोना की जांच , कांटेक्ट ट्रेसिंग , कोरोना का टीका लगवाना ,पीड़ित व्यक्ति को आइसोलेशन ,क्वॉरेंटाइन और उचित देखभाल , यह सभी संक्रमण रोकने और जिंदगी बचाने के  कारगर उपाय हैं । प्रत्येक दिन आयुर्वेदिक जड़ी -बूटियों का सुबह-शाम काढ़ा सेवन । हल्का गुनगुना पानी नींबू रस के साथ सेवन , दूध में हल्दी डालकर  पीना ,गर्म पानी-नमक से गालगलिंग , नियमित योग और व्यायाम ,  सुबह में हल्का धूप का सेवन ,पौष्टिक और सुपाच्य आहार का सेवन ,यह सारे काम करके  कोरोना को हरा सकते हैं ।

अभी के माहौल में देश के अंदर सक्रिय  सभी  सामाजिक , धार्मिक व स्वयंसेवी संगठनों को आगे आकर कोरोना संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए जन भागीदारी एवं सहभागिता सुनिश्चित करानी होगी । इसी तरह सभी राजनीतिक दलों के नेता कार्यकर्ता को भी अपनी -अपनी सकारात्मक भूमिका निभानी चाहिए । सरकार अपने स्तर से पूरी तरह सजग, सक्रिय है ही ।अस्पतालों में कोरोना के मरीजों के लिए बेड के संख्या बढ़ाने के साथ , टेस्ट ,टीकाकरण , इलाज की सुविधा बेहतर करने के कई उपाय किए जा रहे हैं । अब अस्पताल कोरोना डेडीकेटेड हेल्थ सेंटर के रूप में काम कर रहे हैं , पर इन परिस्थितियों के बाद भी  दुर्भाग्य  है कि राहुल गांधी जैसे लोग को यह बात समझ नहीं आती इस विकट महामारी को हम सब मिलकर ही लड़ सकते हैं । संकट के समय समस्या को उजागर करने में हर्ज नहीं है ,लेकिन इसी के साथ कार्य सुझाव की भी दरकार होती है । जिसकी जरूरत जायदे हैं ना कि ताना मारना और अनावश्यक उलाहना देना । राहुल जी से परेशानी यह है देश को , वो दिलासा देने के बजाय लोगों को हतोत्साहित करते रहते हैं । अब जिस तरह की उनकी टिप्पणी है क्या वह बताएंगे पंजाब , राजस्थान, छत्तीसगढ़  ,महाराष्ट्र इन सभी जगहों में कांग्रेस/सहभागी सरकार है , वहां की क्या स्थिति है ? महाराष्ट्र में सबसे  पहले लॉकडाउन लगा इस पर वो क्या कहेंगे ? दूसरी तरफ अगर सरकार लॉकडाउन नहीं लगाएगी तो क्या ? आम जनता का खुद का फर्ज नहीं है कि वह गैरजरूरी कारणों की वजह से घर से बाहर ना निकले , मास्क लगाएं , 2 गज दूरी को गंभीरता से लें और उसका समुचित पालन करें । कोरोना सिर्फ लोगों की जान ही नहीं लेता है बल्कि आर्थिक मंदी,रोजगार , सामाजिक सरोकार , सांस्कृतिक एवं धार्मिक भावनाओं पर भी चोट कर रहा है । राजनीतिक व्यवस्था , पारिवारिक वातावरण एवं सांस्कृतिक मूल्यों के साथ-साथ व्यक्ति के सामाजिक मनोविज्ञान को भी कोरोना से चुनौती मिल रहा है ।कोरोना का पारिवारिक सामाजिक संबंध पर जिस तरह का हमला है उससे आज के डेट में किसी शादी- ब्याह ,तीज -त्योहार ,मृत्यु के अवसर पर भी परिवार के लोग उसमें शामिल होना नहीं चाहते हैं , क्योंकि सबको अपने प्राण प्यारे हैं ।
लोगों को पता है मरणांत या एकांत  में किसी एक का चयन करना है ।कोरोना के चौतरफा हमला से सामाजिक ,सांस्कृतिक ,राजनीतिक ,आर्थिक समस्याओं के रूप में जो देखने को मिला है इससे हम सभी को एक साथ मिलकर ही लड़ना पड़ेगा ।चुनाव फिर आएंगे ,कुंभ मेला फिर आएंगे , धार्मिक, राजनीतिक मेले हर साल होते रहेंगे ,लेकिन अगर हमारी जान निकल गई तो फिर हम अपनों से बिछड़ जाएंगे , फिर हम लौट कर के नहीं आएंगे । अभी एक बात और बहुत सोचनीय लग रहा है कि जापान ,दक्षिण कोरिया ,भारत अमेरिका और फिलीपींस सहित कई देश कोरोना के दूसरी लहर की चपेट में है , पर जिस देश ने  दुनिया को कोरोना दिया वहां टीकाकरण भी सबसे निम्न दर पर है , उसके बावजूद भी संक्रमण के नए मामले उस देश में नाममात्र के हैं , आखिर वायरस को नियंत्रित करने का चीन का रहस्य क्या है ? इस पर भी समूचे विश्व को सोचना चाहिए ?

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