दिल्ली भाजपा ने केजरीवाल सरकार से पूछे पांच सवाल?

नई दिल्ली:  यह कहना गलत नहीं होगा कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए मानवता और संवेदना को दरकिनार करने में कभी गुरेज नहीं किया, उनके लिए दिल्लीवासियों के हित से ज्यादा जरूरी खुद की तस्वीर विज्ञापनों और होर्डिंग्स में चमकाना है। मरीजों को उचित इलाज नहीं मिल पा रहा था, कोरोना मरीजों के मृत्यु की संख्या में भारी इजाफा हो रहा था, मौत के बढ़ते आंकड़े लोगों को डरा रहे थे, ऐसे समय में केजरीवाल सरकार ने कोरोना टेस्टिंग की संख्या ही कम कर दी।

कोरोना की दूसरी लहर को नियंत्रित करने में नाकाम केजरीवाल सरकार ने दिल्ली के बिगड़ते हालातों में टेस्टिंग को कम करके कोरोना संक्रमित मरीजों की असल संख्या को छिपाया और यह दिखाया कि हालात अब काबू में हैं, लेकिन कोरोना के कारण हुई मौतों की बढ़ती संख्या ने केजरीवाल सरकार द्वारा की गई लीपा-पोती पर पानी फेर दिया। केजरीवाल द्वारा दिल्ली में कोरोना टेस्टिंग को लेकर की गई लापरवाही का नतीजा है कि कई अपनों ने साथ छोड़ दिया, तो कई लोग अभी भी जिंदगी और मौत से जूझ रहे हैं। कई शहर छोड़ने पर मजबूर हुए, तो कई लोग आम आदमी पार्टी की भ्रष्ट राजनीति के शिकार हुए। इन सब के बीच केजरीवाल लगातार झूठ बोलकर भ्रम फैलाते रहे और दिल्ली में आम जनता दम तोड़ती रही।
प्रदेश कार्यालय में आज दिल्ली भाजपा अध्यक्ष श्री आदेश गुप्ता, नेता प्रतिपक्ष श्री रामवीर सिंह बिधूड़ी, सांसद श्री हंसराज हंस और सांसद श्री गौतम गंभीर ने संयुक्त प्रेस वार्ता को संबोधित किया। इस अवसर पर दिल्ली भाजपा प्रवक्ता श्री प्रवीण शंकर कपूर उपस्थित थे।
दिल्ली भाजपा अध्यक्ष आदेश गुप्ता ने कहा कि जब देश में कोरोना की दूसरी लहर ने रफ्तार पकड़ी तब जहां अन्य राज्य कोरोना टेस्टिंग पर विशेष जोर दे रहे थे और ज्यादा से ज्यादा लोगों की टेस्टिंग की जा रही थी ताकि स्थिति को नियंत्रित किया जा सके, लेकिन दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार आदत से मजबूर उल्टी दिशा में चल रही थी। जब कोरोना दिल्ली में चरम पर था तब केजरीवाल सरकार ने कोरोना टेस्टिंग की संख्या ही कम कर दी। आंकड़े बताते हैं कि 10 अप्रैल को जहां दिल्ली में 1.14 लाख टेस्ट होने पर 10774 पॉजिटिव केस आए, 12 और 13 अप्रैल को क्रमशः 1.02 लाख टेस्ट में  13468 और 1.08 लाख कोरोना टेस्ट में 17283 पॉजिटिव केस सामने आए। वहीं अगले दिन से ही टेस्टिंग की संख्या में गिरावट आने लगी। जब टेस्टिंग बढ़ाए जाने की जरूरत है तब दिल्ली सरकार टेस्टिंग को कम कर रही थी। 15 अप्रैल को 98,957 और 20 अप्रैल को यह संख्या 78,767 पर आ गई। 25 अप्रैल को यह संख्या घटकर 57,690 हो गई। 21 अप्रैल से 25 अप्रैल के बीच औसत 70,000 टेस्ट हुए, 26 अप्रैल को केवल 57,690 टेस्ट ही हुए। मई में टेस्टिंग को घटा कर 50 प्रतिशत पर कर दिया गया। 14 मई को 56,811 टेस्ट, 6430 पॉजिटिव, 16 मई को 53,756, 4524 पॉजिटिव, 19 मई को 58,744 टेस्ट, 3231 पॉजिटिव केस मिले। टेस्ट कम होने के साथ पॉजिटिव केस की संख्या में आश्चर्यचकित करने वाली गिरावट भी देखने को मिली। इन घटते आंकड़ों ने फिर कभी 1 लाख टेस्ट का आंकड़ा नहीं छूआ और घटती टेस्टिंग संख्या ने मुख्यमंत्री केजरीवाल के प्रतिदिन 1 लाख कोरोना टेस्ट के दावे की सच्चाई बता दी। कम टेस्टिंग को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट ने भी केजरीवाल सरकार को फटकार लगाया था। 30 अप्रैल को दिल्ली हाई कोर्ट ने टेस्टिंग आंकड़ों का जिक्र करते हुए आम आदमी पार्टी की सरकार से सवाल किया कि दिल्ली में कोविड-19 की टेस्टिंग में इतनी कमी क्यों आ गई है। यह कोई इत्तेफाक नहीं हो सकता है बल्कि अपनी झूठी छवि को बरकरार रखने और वाहवाही लूटने के लिए मुख्यमंत्री केजरीवाल ने टेस्टिंग की संख्या को कम करवाया। जिसके कारण लोग संक्रमित होने पर भी टेस्ट नहीं करवा पाए और अपने घर और मोहल्ले में संक्रमण बढ़ने का कारण बने। जब तक उन्होंने टेस्ट करवाया तब तक वह गंभीर हालत में पहुंच चुके थे और कई लोगों ने इस आपाधापी में अपनी जान गंवा दी।
श्री गुप्ता ने कहा कि चरमराती स्वास्थ्य व्यव्स्थाओं और कम टेस्टिंग के बीच टेस्टिंग रिपोर्ट आने में देरी भी कई लोगों की मृत्यु का कारण बनी। कोरोना संक्रमित मरीजों की रिपोर्ट 4 से 7 दिन में आ रही थी, तब तक मरीज की हालत गंभीर स्थिति में पहुंच जाती थी और अस्पताल में उन्हें आईसीयू बेड की जरूरत पड़ती थी, लेकिन उस समय व्यवस्था न होने के कारण उन मरीजों की मृत्यु हो गई। अगर यह रिपोर्ट समय पर मिलती तो समय रहते उन मरीजों को इलाज मिल पाता और उनकी जान बच सकती थी।
टेस्टिंग रिपोर्ट आने में एक सप्ताह का समय लगने के कारण लोग अन्य बीमारियों के इलाज से भी वंचित रह गए और उनकी जान चली गई। कोई भी व्यक्ति अगर किडनी, दिल या अन्य बीमारी से भी परेशान होकर डॉक्टर के पास जाता था तो डॉक्टर उनसे कोविड के बारे में पूछते थे, लेकिन जब वह व्यक्ति कोरोना टेस्टिंग कराता था तो रिपोर्ट 4 से 7 दिन बाद आती थी तब तक उस व्यक्ति का इलाज न होने के कारण मृत्यु हो जाती थी। लेकिन फिर भी केजरीवाल सरकार की कार्यप्रणाली में कोई सुधार नहीं आया, वह हाथ पर हाथ धरे बैठी रही।
नेता प्रतिपक्ष रामवीर सिंह बिधूड़ी ने कहा कि जब दिल्लीवासियों को जरूरत थी तब केजरीवाल सरकार की मोहल्ला क्लीनिक भी बस शो पीस की तरह मुख्यमंत्री की फर्जी उपलब्धियों में से एक बनी रही। वर्ल्ड क्लास स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम पर बने मोहल्ला क्लीनिक को टेस्टिंग सेंटर्स के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता था, लेकिन महामारी सिर पर आकर खड़े होने पर भी मुख्यमंत्री केजरीवाल ने इन क्लीनिकों में कोई व्यवस्था नहीं की। मुख्यमंत्री के इस विपरीत बुद्धि का खामियाजा दिल्लीवासियों को जान देकर चुकाना पड़ा। यहां तक कि माननीय दिल्ली हाईकोर्ट ने मोहल्ला क्लीनिक के इस्तेमाल को लेकर केजरीवाल सरकार को सख्त शब्दों में कहा था कि अगर आपने कोई जगह तैयार की और उसका ऐसी महामारी के दौरान इस्तेमाल तक नहीं हो सकता तो ऐसी जगह का क्या फायदा। लेकिन केजरीवाल सरकार ने एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल दिया और कम टेस्टिंग की समस्या जस की तस बनी रही। बढ़ती जांचें कोरोना वायरस का सामना करने के लिए अहम भूमिका निभाती हैं, क्योंकि ये मरीजों की जल्दी पहचान और मृत्यदर कम करने में मदद करती है, लेकिन फिर भी केजरीवाल सरकार ने इस पर कोई विशेष ध्यान देना जरूरी नहीं समझा।
सांसद गौतम गंभीर ने कहा कि ने कहा कि पिछले साल दिल्ली में कोरोना महामारी का भयानक रूप सभी ने देखा और इस साल भी कोरोना की दूसरी लहर के प्रकोप से दिल्लीवासी परेशान है। कोरोना की पहली लहर पर काबू पाने के बाद जहां अधिकांश राज्य दूसरी लहर के अंदेशा लगाकर स्वास्थ्य व्यव्स्थाओं को मजबूत में लग गई वहीं केजरीवाल सरकार अखबारों और टीवी चैनलों में वाहवाही लूटने के चक्कर में लगी रही। केजरीवाल सरकार के पास स्वास्थ्य की आधारभूत संरचनाओं में सुधार करने का पर्याप्त समय था, लेकिन कुछ भी नहीं किया गया। इस अंतराल में अगर मुख्यमंत्री की मंशा दिल्लीवासियों के हित में काम करने की होती तो वह टेस्टिंग लैब्स की संख्या बढ़ाने की दिशा में काम करते और टेस्टिंग के लिए लोगों को दर-दर भटकना नहीं पड़ता और न ही उन्हें भीड़ वाले टेस्टिंग लैब्स पर लंबी लाइन में लगना पड़ता। दिल्लीवासियों के हितैषी बनने का ढ़ोंग करते-करते मुख्यमंत्री केजरीवाल ने उन्हें ही मृत्यु की कगार पर लाकर खड़ा कर दिया जिसकी कल्पना शायद ही किसी ने की होगी। टेस्ट के लिए इतनी मशक्कत करने के बाद लोग निजी लैब के मनमाने लूट के भी शिकार हुए। लोगों को आरटी-पीसीआर टेस्ट के लिए 2400 रुपए, एंटीजेन टेस्ट के लिए 1300 रुपए देने पड़े, इसके अलावा जो टेस्ट 1700-3000 रुपए में होते थे उसके लिए लैब वालों ने दोगुने-तीगुने पैसे वसूले। निजी लैब की मनमानी पर लगाम लगाने की बजाए केजरीवाल सरकार उन्हें संरक्षण दे रही थी। केजरीवाल सरकार जनता के लिए नहीं बल्कि जनता के खिलाफ ही क्यों काम करती है, इससे कितना फायदा हुआ इसका हिसाब और जबाव केजरीवाल सरकार ही दे सकती है।
श्री गंभीर ने कहा कि जमीन पर कम और टीवी पर ज्यादा दिखने वाले मुख्यमंत्री केजरीवाल ने टेस्टिंग नहीं बढ़ाई, लेकिन टेस्टिंग सेंटर्स को कोरोना का सूपर स्प्रेडर जरूर बनने दिया। तमाशबीन सरकार टेस्टिंग सेंटर्स पर कोरोना से बचने के नियमों का पालन नहीं करवा पाई, नतीजन कोरोना केस में बढ़ोतरी हुई। कहीं टेस्टिंग नहीं हो रही तो कहीं लंबी लाइन लगाकर लोग अपनी बारी आने का इंतजार कर रहे थे, क्योंकि टेस्टिंग सेंटर पर 7 से 8 घंटों का लंबा इंतजार लोगों को करना पड़ता था। सैकड़ों की संख्या में लोग वहां खड़े रहते थे और फिर बिना टेस्टिंग के घर वापस चले जाते थे। इस वजह से पहले तो वहां पर खड़े होने से लोगों के अंदर एक दूसरे से संक्रमण फैलता था और फिर वही संक्रमण लेकर लोग अपने घरों में जाकर परिवार के अन्य सदस्यों को भी संक्रमित करते थे। ऐसे में देखा जाए तो इनके टेस्टिंग सेंटर कोरोना को फैलाने का केंद्र बन गया। यानी केजरीवाल के स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही की ही देन है कि कोरोना धीरे-धीरे पूरी दिल्ली को अपनी चपेट में लेता चला गया।
हंसराज हंस ने कहा कि पिछले साल मुख्यमंत्री केजरीवाल ने बड़े जोर-शोर से कोरोना महामारी से लड़ने के लिए फाइव टी योजना के तहत काम करने की घोषणा की। जिसके तहत कंटेनमेंट जोन में टेस्टिंग, ट्रेसिंग, ट्रीटमेंट, टीम-वर्क और ट्रैकिंग मॉनिटरिंग की योजना पर काम किया जाएगा और दक्षिण कोरिया की तरह ही कोरोना पर काबू पाया जाएगा। इस साल भी कोरोना की दूसरी लहर के कारण उत्पन्न परिस्थितियों की गंभीरता का आकलन करते हुए जहां केजरीवाल सरकार को कंटेनमेंट जोन में इन फाइव टी की रणनीति पर विशेषकर काम करना चाहिए था वहीं मुख्यमंत्री केजरीवाल ने प्रेस कान्फ्रेंस में अपना समय व्यतीत करना ज्यादा जरूरी समझा। टेस्टिंग कम होने से कंटेनमेंट जोन में टेस्टिंग बहुत प्रभावित हुई जिसके कारण स्थिति चुनौतीपूर्ण बन गई थी। कोरोना की रफ्तार को काबू में करने के लिए ज्यादा से ज्यादा लोगों की टेस्टिंग ही सबसे कारगर उपाय था, लेकिन इसमें भी लापरवाही की गई। वर्तमान में केजरीवाल सरकार ने 56,732 कंटेनमेंट जोन बनाए हैं जो सिर्फ कागजों पर ही दिखते हैं, हकीकत में बने कंटेनमेंट जोनों में टेस्टिंग, ट्रेसिंग, ट्रैकिंग जैसी सुविधा नदारद है। टेस्टिंग और अस्पताल का खर्च न वहन कर पाने वाले, झुग्गी-बस्तियों, अनधिकृत नियमित कॉलोनियों, गांव-देहात में रहने वाले गरीब-जरूरतमंद लोग संक्रमित होने पर किसी तरह घर में आइसोलेट थे, सुविधाओं के अभाव में उनकी मृत्यु हो गई। अगर केजरीवाल सरकार ईमानदारी और गंभीरता से इन कंटेनमेंट जोन के प्रत्येक घर में जाकर टेस्टिंग, ट्रेसिंग, ट्रैकिंग के कार्य पर अमल करती, तो शायद हालात इतने बुरे न होते। कंटेनमेंट जोन में कोरोना अपने पैर पसारता रहा और केजरीवाल सरकार सोती रही।
दिल्ली भाजपा ने केजरीवाल सरकार से पूछे पांच सवाल?
1. दिल्ली में कोरोना महामारी के चरम समय पर टेस्टिंग कम करने की वजह से हुई मौतों का जिम्मेदार कौन है?
2. टेस्टिंग रिपोर्ट में देरी के कारण समय पर इलाज न मिलने से हुई मौतों के दोषी क्या केजरीवाल सरकार नहीं? जबाव दें?
3. माननीय उच्च न्यायालय द्वारा पूछे जाने पर भी मोहल्ला क्लिनिक में कोरोना के समय पर केजरीवाल सरकार ने वहां टेस्टिंग क्यों नहीं की?
4. कोरोना काल के एक साल से अधिक समय निकल जाने पर भी टेस्टिंग लैब्स की संख्या क्यों नहीं बढ़ाए गए, प्राइवेट लैब्स को मनमानी करने की छूट क्यों दी? टेस्टिंग सेंटर्स पर भीड़ करवा कर, उन सेंटर को कोरोना सुपर स्प्रेडर क्यों बनने दिया?
5. कागजों पर बने तथाकथित 56,732 कंटेनमेंट जोन (लगभग 200 कंटेनमेंट जोन प्रत्येक नगर निगम वार्ड में), सेवा बस्तियों, अनाधिकृत कॉलोनी और गांव-देहात में केजरीवाल सरकार ने घर-घर जाकर टेस्टिंग क्यों नहीं की?

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