60 दिन में ब्याज समेत धनराशि दे बीमा कंपनी: राज्य उपभोक्ता फोरम

नोएडा: पति की मौत के बाद बीमा योजना की रकम पाने के लिए आठ साल से एलआईसी कंपनी से कानूनी लड़ाई लड़ रही महिला को राज्य  उपभोक्ता फोरम ने राहत दी है। राज्य उपभोक्ता फोरम ने एलआईसी की अपील को खारिज करते हुये 60 दिन में ब्याज समेत धनराशि देने का आदेश दिया है। मामला ये है कि सैक्टर-34 नोएडा निवासी उर्मिला के पति राम प्रकाश नोएडा प्राधिकरण में तैनात थे।

राम प्रकाश ने फरवरी 2012 में सैक्टर-1 स्थित एलआईसी दफ्तर से अनुराग बीमा योजना की चार बीमा योजना ली थी।चारों ही एक एक लाख की पॉलिसी थी।जिसकी उन्होंनें सारी किश्ते जमा कर दी थी।एक साल बाद फरवरी 2013 में राम प्रकाश का हार्ट अटैक होने से निधन हो गया।इसके बाद जब उर्मिला ने एलआईसी शाखा से बीमा की धनराशि मांगी तो एलआईसी ने राम प्रकाश को कैंसर बिमारी से ग्रासित बताकर क्लेम देने से इंकार कर दिया।एलआईसी कंपनी द्वारा धोखा दिये जाने के बाद उर्मिला ने विपरीत परिस्थिति में भी धैर्य न खोते होते हुए जिले के दो प्रतिष्ठित अधिवक्ता सुभाष चौहान और जयदेव अवाना से संम्पर्क करके उन्हें आप बीती बतायी।
इसके बाद पीड़िता द्वारा मंडल कार्यालय मेरठ,जोनल कार्यालय कानून और बीमा लोकपाल कार्यालय में अपील करने के बाद भी उनको न्याय नहीं मिला।उसके बाद जिला उपभोक्ता फोरम में वाद दाखिल किया।जिला उपभोक्ता फोरम ने पीडिता के पक्ष में आदेश देते हुए मार्च 2020 में एलआईसी को बीमा की राशि देने का आदेश दिया।लेकिन एलआईसी इस फैसले के खिलाफ राज्य उपभोक्ता फोरम में चला गया।मामले की गंभीरता को देखते हुये राज्य उपभोक्ता फोरम ने एलआईसी की अपील को खारिज करते हुए 60 दिन में ब्याज समेत धनराशि देने का आदेश दिया।
अधिवक्ता जयदेव अवाना ने बताया कि शिकायतकर्ता महिला को बच्चों की पढ़ाई लिखाई वास्ते पैसे की आवश्यकता रही और वह बीमा धनराशि की भी कानूनन हकदार थी।लेकिन एलआईसी ने सरकारी संस्था होने और हर वर्ष कई हजार करोड़ रु चैरिटी में खर्च दिखाने बावजूद उसकी मदद नहीं की।हम उसके लिए ब्रांच ऑफिस नोएडा,मण्डल कार्यालय मेरठ,जोनल आफिस कानपुर तक लड़े,उनके सहित नयाबांस सेक्टर 15 स्थित एलआईसी के बीमा लोकपाल तक ने मदद नहीं की, बल्कि असंतुष्ट होने की हालत में फोरम/सिविल कोर्ट जाने की लिखित सलाह दी अपने फैसले में।तब हम जिला फोरम से जीते,एलआईसी ने राज्य उपभोक्ता आयोग  लखनऊ में उसके खिलाफ अपील की,जिसमें भी बतौर वकील हमनें स्वयं ने ही दलीलें दी बहस की कई तारीखों पर,क्योंकि उस महिला उर्मिला के पास वहां वकील फीस के पैसे नहीं थे।उसने यात्रा खर्च जरूर वहन किया।

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