मानसून केवल बारिश ही नहीं बल्कि साथ में भयंकर बाढ़ भी ला रहा है: प्रेम
Date posted: 2 August 2021
मानसून केवल बारिश ही नहीं ला रहा है, बल्कि साथ में भयंकर बाढ़ भी ला रहा है। बाढ़ से बिहार ही नहीं देश के कई हिस्से और विश्व के प्रमुख देशों में विनाशकारी तबाही ला रहा है। आखिर अमृत माना जाने वाला बारिश का पानी आफत क्यों बनता जा रहा है? इस बार ही अगर देखें तो बरसात आते ही बिहार का आधा हिस्सा बाढ़ के पानी से प्रभावित है। जमीन, फसल, मवेशी, मानव जीवन एवं संसाधनों की तबाही हुई है।
दिल्ली,मुंबई और चेन्नई से लेकर के पटना,भागलपुर,वाराणसी, भोपाल जैसे शहरों की दशा पानी-पानी हुई है। एशिया का मुल्क चीन, बांग्लादेश व अमेरिका ,यूरोपियन देश के अलावा ऑस्ट्रेलिया में भारी बारिश ने भयंकर तबाही मचाई। वित्तीय क्षति के साथ-साथ जानमाल से भी हाथ धोना पड़ रहा है। भारत सरकार की नीति आयोग की रिपोर्ट में बाढ़ की वजह से देश को प्रतिवर्ष 5,649 करोड़ रुपये और 1,654 मानव जीवन का नुकसान होता है। पूरे विश्व के मानव समुदाय के इन हालात को रोकने के पर्याप्त प्रबंध नहीं किए गए तो आने वाले समय में इससे भी ज्यादा भयानक तबाही बाढ़ ला सकता है। भारत में वार्षिक वर्षा मई,जून,जून,अगस्त और सितंबर माह में बट कर होता था।अब चार माह की बारिश एक ही माह में हो जाने से समस्या बन गई है। फसल,नस्ल, मानव को नुकसान पहुंचा रहा है।
मानसून का परंपरागत चक्र बदलने से अत्यधिक वर्षा, ग्लोबल वार्मिंग से मानसून की परंपरागत चक्र का बदल जाना और अनियोजित विकास,उद्योगीकरण, वृक्षों की कटाई एवं अत्यधिक एसी, फ्रिज के इस्तेमाल से पर्यावरण असन्तुलन के कारण एक ही बार अत्यधिक वर्षा से बाढ़ का कहर होना वाजिब है। कैलिफोर्निया के जंगलों में एक वर्ष से लगी आग से जलवायु परिवर्तन का एक कारक हो सकता है। कुल मिलाकर पर्यावरणविद्, मौसम विज्ञानी एवं सरकारों को वर्षा की आफत से निजात के लिए दीर्घकालिक योजना बनाना होगा। क्योंकि प्रकृति कंजूस नहीं होती? वह सदैव कुछ ना कुछ देने को आतुर रहती है। हम जैसा व्यवहार प्रकृति के साथ करते हैं उसी अनुरूप हमें मिल रहा है। प्रकृति से ना करें छेड़छाड़ वरना जीना होगा दुश्वार। मातृस्वरूपा,प्रेम स्वरूपा और भक्ति स्वरूपा प्रकृति का साथ रहेंगे तो निरोग रहेंगे।प्रकृति का दोहन-शोषण करेंगे, तो रोगी बनेंगे,
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