बेटियों की सुरक्षा हम सबकी जिम्मेदारी: डा. ललित
Date posted: 31 December 2021
नोएडा: पीसी-पीएनडीटी एक्ट 1994 यानि गर्भ में कन्या भ्रूण की पहचान करने के खिलाफ कानून के प्रभावी क्रियांवयन को लेकर बृहस्पतिवार को सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र डाढ़ा पर जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में वक्ताओं ने लिंग भेद मिटाने पर बल दिया।
कार्यक्रम में अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी एवं पीसी-पीएनडीटी कार्यक्रम के नोडल अधिकारी डा. ललित कुमार ने जनपद में लिंग परीक्षण रोकने के लिए मुखबिर योजना के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने जनसामान्य से अपील की कि यदि उन्हें गर्भ भ्रूण लिंग जांच के संबंध में कोई जानकारी मिलती है तो इसकी सूचना तत्काल स्वास्थ्य विभाग को दें। इसी के साथ उन्होंने कार्यक्रम में उपस्थित निजी चिकित्सकों और अल्ट्रासाउंड केन्द्रों के संचालकों से अपील की कि वह किसी भी सूरत में लिंग भ्रूण जांच न करें।
उन्होंने कहा लिंगभ्रूण जांच न केवल अनैतिक है बल्कि कानूनीतौर पर भी दंडनीय है। उन्होंने कहा हमारी बेटियां हमारी शान हैं, हमारी बेटिया हमारी पहचान हैं, इनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी हमारी है। सभी को मिलकर इस दिशा में प्रयास करना होगा। उन्होंने जनपद में बढ़ रहे लिंगानुपात पर खुशी जाहिर की।
सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र डाढ़ा के प्रभारी चिकित्सा अधिकारी डा. राहुल वर्मा ने बेटियों की सुरक्षा के लिए प्रचार प्रसार किये जाने की जरूरत बतायी। पीसी पीएनडीटी की जिला समन्वयक मृदुला सरोज ने बताया स्वास्थ्य विभाग के अथक प्रयासों से जनपद में लिंगानुपात निरंतर बढ़ रहा है। उत्तर प्रदेश में लिंगानुपात प्रति हजार 912 है जबकि गौतमबुद्धनगर जनपद में लिंगानुपात 929 है।
कार्यक्रम में क्षेत्र के ग्राम प्रधान, आशा- आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, एएनएम, अल्ट्रा साउंड केन्द्र के संचालक, निजी चिकित्सक डा. आकांक्षा कनौजिया, डा. मीनू अग्रवाल, डा. वंदना, डा. बीएम शर्मा, डा. हेमन्त शर्मा, डा. निधि, हुकुम सिंह, डाटा एंट्री ऑपरेटर संध्या यादव सहित स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों-कर्मचारियों ने भाग लिया।
क्या है पीसीपीएनडीटी एक्ट
पूर्व गर्भाधान और प्रसव पूर्व निदान तकनीक अधिनियम, 1994 भारत में कन्या भ्रूण हत्या और गिरते लिंगानुपात को रोकने के लिए संसद द्वारा पारित एक संघीय कानून है। इस अधिनियम से प्रसव पूर्व लिंग निर्धारण पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। प्री-नेटल डायग्नोस्टिक टेक्नीक ‘पीएनडीटी’ एक्ट 1996 के तहत जन्म से पूर्व शिशु के लिंग की जांच पर पाबंदी है। ऐसे में अल्ट्रासाउंड या अल्ट्रासोनोग्राफी कराने वाले जोड़े या करने वाले चिकित्सक, लैब कर्मी को तीन से पांच साल सजा और 10 से 50 हजार जुर्माने की सजा का प्रावधान है।
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