नदियों का अविरल, निर्मल प्रवाह, केन्द्र व यू.पी. सरकार की कार्यसूची में है: दीक्षित
Date posted: 22 March 2021
लखनऊ: उत्तर प्रदेश विधान सभा के अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित जी मुख्य अतिथि के रूप में आज संवैधानिक एवं संस्दीय अध्ययन संस्थान, उ0प्र0 क्षेत्रीय शाखा, विधान भवन, लखनऊ की ओर से ‘‘जल का महत्व-संकट एवं समाधान’’ विषय पर राही पर्यटक आवास गृह, शहीद चन्द्रशेखर आजाद पक्षी विहार नवाबगंज, उन्नाव में कहा कि जल जीवन है।
जल से अन्न हैं, वनस्पति हैं और औषधियां भी। जीवन जगत् के सभी पंचतत्व जलतरंग में हैं। जल रस है और रस आनंद का स्रोत है। शतपथ ब्राह्यण में ‘जल को प्राण’ कहा गया है। सृष्टि का उद्भव जल से हुआ। यह बात ऋग्वेद में है। यूनानी दार्शनिक थेल्स (600 ई0पू0) भी यही मानते थे। विकासवादी सिद्धांत के जनक चाल्र्स डारविन का विचार भी यही है। भारत में हजारों बरस सदानीरा जल संस्कृति रही है। जल संरक्षण सामाजिक कत्र्तव्य रहा है लेकिन बीते 50-60 बरस से जल प्रदूषण की सुनामी है।
नदियां औद्योगिक कचरा पेटी बन रही हैं। झीलों का वध हो रहा है। ग्रामीण जलाशय अवैध कब्जे के शिकार है। तेलंगाना हैदराबाद के बीच से बहने वाली मुसी नदी सर्वाधिक प्रदूषित है। यमुना का प्रदूषण भयावह है। पांच राज्यों में प्रवाहमान गंगा का प्रदूशण राष्ट्रीय बेचैनी है। इसका अविरल निर्मल प्रवाह केन्द्र व यू0पी0 सरकार की कार्यसूची में है। चेन्नई महानगर से होकर बहने वाली कुअम, मुम्बई में प्रवाहित मीठी पुणे की मुलामुथा, बंगलौर की वृषभावती गुजरात की साबरमती, लखनऊ की गोमती और प0बंगाल झारखण्ड की दामोदर आदि नदियां भी प्रदूषण की शिकार है।
ये तीन हजार से ज्यादा खूबसूरत प्राकृतिक झीलंे हैं और 60-65 हजार मनुष्य निर्मित जलाशय। अधिकांश झीलें नगरीय प्रार्थना की गई है। संप्रति सभी जलस्रोतो पर आधुनिकता का आक्रमण है। देश के तमाम भागों का पेय जल भी प्रदूषित है।
भारत का अन्तस् नदी नाद के छन्दस् में आनंदमगन रहा है। अर्थवेद में कहा गया है कि ‘‘हे सरिताओं! आप नाद करते बहती है इसीलिए आपका नाम नदी है।’’ नैनीताल उच्च न्यायालय ने गंगा यमुना को अब व्यक्ति माना है। पूर्वजों ने हजारों बरस पहले ही नदियों को प्राणवान जाना था। न्यूजीलैण्ड ने भी अपनी वांगानुई नदी को संवैधानिक दर्जा दिया है। बेशक यहां एक शुभ संदेश है, लेकिन जलस्रोतों की हत्या का मूलभूत प्रश्न जस का तस है कि क्या नदियां जबरदस्ती कूड़ा करकट और औद्योगिक कचरे से पटी पड़ी है कश्मीर की डल झील सुंदर मानी जाती थी। डल झील के रखरखाव पर करोड़ों का खर्च हो रहा है। लेकिन अब इसका आकार लगभग आधा ही रह गया है। बैगंलूरू को झीलों का नगर कहा जाता था। कुछ समय पहले यहां लगभग तीन सौ सुंदर जलाशय थे। उ0प्र0 के नैमिष नगर के जलाशय की पौराणिक मान्यता है, प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु यहां आते हैं, लेकिन जल निर्मल नहीं।
वैदिक पूर्वजों ने जल को बहुवचन जलमाताएं कहा है। ऋगवेद (10, 72, 6) के अनुसार ‘‘सभी देवता जल में है।’’ वैदिक मंत्रों में ‘‘जलमाताओं से पवित्रता और शुद्धि की औद्योगिक विष पिलाने के विरूद्ध किसी थाने में रिपोर्ट लिखा सकती है? क्या वे जीवन के मौलिक अधिकार को लेकर किसी न्यायालय में याचिका दायर कर सकती हैं? नदियां प्रकृति का अविभाज्य अंग हैं और हम सब भी। हम जलस्रोतों पर निर्भर हैं और जलस्रोत हम पर हम और सभी जल स्रोत परस्परावलम्बन में हैं। वे मरेंगे तो हम भी नहीं बच सकते। लेकिन कहने भर से कत्र्तव्य पूरा नहीं होता प्रकृति दोहन की हमारी भूख अनियंत्रित है। हमने नदियों को औद्योगिक कचरा सहित सारी गंदगी डालने का सहज क्षेत्र बनाया है।
औद्योगिकरण को लेकर भारत और यूरोपीय सोच में मूलभूत अंतर है। वे प्रकृति का अंधाधुंध दोहन करते हैं, हम प्रकृति संरक्षण को कत्र्तव्य मानते है। औद्योगीकरण बेसक जरूरी है लेकिन औद्योगिक कचरे को गंगा सहित किसी भी नदी में ही फेंकना क्यों जरूरी हैं। अधिकांश महानगर नदी तट पर हैं। गंगा तट पर 100 से ज्यादा आधुनिक नगर और हजारों गांव हैं नगरों महानगरों का सीवेज गंगा जैसी नदियों में ही बहता है। उ0प्र0 के कानपुर व उन्नाव क्षेत्रों में चमड़े के उद्योग है। इनका पानी भी गंगा में जाता है। पशु वधशालाओं के रक्त नाले भी गंगा में गिरता हैं। जलशोधन संयंत्रों को लगाने के हजारों निर्देश होते रहे हैं। लेकिन निर्देश न मानने वालों के विरूद्ध कोई कड़ी कार्रवाई नहीं हुई। उन्नाव औद्योगिक क्षेत्र से निकली लोन नदी के तट पर बसे लगभग 500 गावों में हैण्डपम्प का पानी भी जानलेवा रसायनों से भरापूरा है।
उ0प्र0 के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने जल प्रदूषणकारी उद्योगों के स्थानान्तरण पर गंभीर है। मनुष्येतर प्राणी भी मर रहे है। जैव विविधता के अस्तित्व पर संकट है। औद्योगिक विकास का उद्देश्य राष्ट्रीय समृद्धि का संवर्द्धन ही होता हैं जल स्रोत अमूल्य राष्ट्रीय संपदा भी नहीं की जा सकती।
भारत की सनातन प्यास है-नदियां बहें, निर्मल, अविरल, निर्मल, कल कल। ऋग्वेद में वृत्र एक दानव है। मैकडनल ने उसे ‘डेमन आॅफ ड्राट-सूखा लाने वाला दानव कहा है। देवता इन्द्र ने उसे वज्र से मारा। ऋग्वेद में इन्द्र की स्तुती है ‘‘आपने नदियों का सदा प्रवाहित मार्ग खोला है वज्र से वृत को मारा है। ’’आधुनिक संदर्भ में नदी प्रवाह रोकने वाले, नदी जल में जहर घोलने वाले समूह ऐसे ही क्यों नहीं हैं? औद्योगिक हित बनाम राश्ट्रहित के मूल्यांकन में राष्ट्रसर्वोपरिता का ध्यान रखना चाहिए। एक आदर्श जल संस्कृति का विकास आवश्यक हैं यह काम अकेले सरकार की अपनी शक्ति है तो एक सीमा भी है। लोक की शक्ति बड़ी हैं। संस्कृति का विकास लोक करता है।
कार्यक्रम आयोजन के अध्यक्ष मानवेन्द्र सिंह सभापति विधान परिषद ने मुख्य अतिथि सहित मंचासीन सदयस्यो का स्वागत व अभिनन्दन करते हुए कहा कि का इस विचार गोष्ठी में व्यक्त विचार से आम जनमानस को विकास के नये क्षितिज को स्पर्श करने की सीख मिलेगी। सभापति विधान परिषद ने कहा कि इस प्राकृतिक मनोरम स्थल का एक और संदेश देने में सफल होगें पर विचार गोष्ठी का विषय है जो वर्तमान परिपे्रक्ष्य में बहुत ही सार्थक और जीवन्त है ‘‘जल का महत्व संकट एवं समाधान’’ जल के विना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। जलपर मनुष्य ही नहीं अपितु सभी जीव जन्तु अपितु पेड़ पौधे भी निर्भर है। वहीं जल का कोई विकल्प भी नही है। जल कृषि में मदद करता है साथ ही यह हमारे परिस्थित की तंत्र व वनों की रक्षा करता है। जल संरक्षण करने से ऊर्जा की बचत होती है जल संरक्षण सूखे से बचाव करता है तथा यह हमारे पर्यावरण की रक्षा होती है।
कुँवर मानवेद्र सिंह ने गोष्ठी में आये सभी सम्मानित सदस्यों के लिखित भाषण को कार्यवाही का भाग बनाये जाने एवं अधिक से अधिक सदस्यों को गोष्ठी में अपने विचार रखने के लिए प्रेरित भी किया। इस अवसर पर अतिथि के रूप में जलशक्ति मंत्री डाॅ. महेन्द्र सिंह, विधायक बृजेश रावत, संस्थान की इस गोष्ठी में आये सभी सदस्यों के साथ विधान परिषद डाॅ. राजेश सिंह व विधान सभा के प्रमुख सचिव प्रदीप दुबे मौजूद रहे। मंच का संचालन दीपक मिश्र ने किया।
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