क्या वो राजनीति में स्त्री पुरूष के आधार पर ही राजनीति करना चाहते हैं ?
Date posted: 23 April 2020

सहमति और असहमति लोकतंत्र की व्यवस्था और मूल्यों के स्थायी स्वाभाव हैं । देश में लम्बे कालखंड तक या यूँ कहें कि सर्वाधिक समय तक स्वयं या फिर अपने प्यादों या अपनी बैसाखी पर एक कुनबे ने प्राइवेट पार्टी लिमिटेड बनाकर सत्ता प्रतिष्ठान पर खुद को स्थापित रखा । इस कालखंड में वोटबैंक तुष्टिकरण, पांथिक उन्मादी आतंकवाद, अलगाववाद , नक्सलवाद, गरीबी , सामाजिक विद्वेष, पंथ आधारित दंगे , एक वर्ग या पंथ विशेष द्वारा देश के बहुसंख्यक समुदाय तथा उसके उपमार्गी समुदायों का देश के भिन्न भिन्न हिस्सों में अनेक बार नरसंहार किया गया ।
जब जब आतंकवादियों, अलगाववादियों, एक मजहब विशेष के ऊपर संविधानिक व्यवस्था के तहत कार्यवाही सुनिश्चित की गयी ; तब तब इस राजवंश को समस्या हुई और राजवंश ने कभी प्रत्यक्ष, तो कभी अप्रत्यक्ष रूप से प्रायोजित करके इन कार्यवाहियों का विरोध किया तथा मध्यरात्रि को लोग कोर्ट का दरवाजा खुलवाकर निर्णय करवाने के लिए गये ।
जब जब देश के किसी कोने में कहीं कोई घटना हुई , जिससे इस राजवंश की राजनीतिक आकांक्षाओं को लाभ हो सकता है तो राजवंश पूरी ताकत से अपनी चाटुकार मण्डली के साथ उस घटना पर घड़ियाली आंसू बहाने और छाती पीट क्रंदन करने पहुंच जाता है । लेकिन यही आंसू सूख जाते हैं और क्रंदन मौन हो जाता है , जब पीड़ित बहुसंख्यक समुदाय से हुआ या फिर इनकी राजनीतिक आकांक्षाओं को लाभ न पहुंचाने तथा इनकी वोटबैंक तुष्टिकरण राजनीति को नुकसान पहुंचाने वाला हो सकता है ।
आज जब दो संन्यासियों की इस राजवंश द्वारा शासित राज्य में पुलिस कर्मियों के सामने हत्या हुई है तो उनसे प्रश्न पूंछा जाना स्वाभाविक है क्योंकि चुनाव के समय राजवंश के युवराज जनेऊ पहनकर व जमीन खोर वाड्रा की जीवन संगिनी युवरानी त्रिपुंड लगाकर मंदिर मंदिर घूमकर यह घोषित करने की कोशिश करते हैं कि वो चौबीस कैरेट शुद्ध गोत्र के सनातनी विप्र हैं ।
स्वजनो आप सभी के एक से अधिक नाम होंगे और आपको लोग इन्हीं नामों से पुकारते भी होंगे!!!! अब अगर किसी को उसके पूर्व नाम से पुकारा जाये तो इसमें उसका अपमान कैसे हो गया ??? अब अगर कोई व्यक्ति भारत सरकार के सक्षम पटलों पर अपने पूर्व नाम के आधार पर ही किसी सुविधा या व्यवस्था के लिए आवेदन करता है तो फिर उस नाम से पुकारे जाने पर अपमान कैसा ???
स्वजनो जब हम समतावादी समाज की स्थापना पर जोर देते हैं और लिंग, जाति, वर्ग , पंथ, के भेद को उन्मूलित करने का बार आग्रह करते हैं तो फिर स्वाभाविक प्रश्नों से या पुराने नाम से पुकारे जाने या पुराने कृत्यों को करने के लिए घेरे जाने से असहज होने पर स्त्री पुरूष के भेद का बेजा लाभ लेने की मंशा क्यों है ???? क्या वो राजनीति में स्त्री पुरूष के आधार पर ही राजनीति करना चाहते हैं??? बात बात पर देश के संविधानिक व्यवस्था के प्रमुख से प्रश्न करने और बहस करके भूकंप लाने की चुनौती देने वाले प्रश्नों से भाग क्यों रहे हैं??? वो आगे आकर देश को बताते क्यों नहीं हैं कि वो किन संविधानिक अपराधों के लिए जमानत पर घूम रहे हैं ??? आखिर वह हिन्दू संयासियों की अमानवीयता पूर्ण हत्या पर मौन क्यों है??? आखिर बाटला हाऊस के आतंकियों की मौत पर फूट फूटकर आंसू बहाने और छाती पीट क्रंदन करने वाली राजमाता निरीह हिन्दू संयासियों की हत्या पर मौन क्यों हैं???
पत्रकारों और उनके प्रश्नों से असहमत होने का मतलब यह तो नहीं होना चाहिए कि जब वह काम से वापस अपनी पत्नी के साथ घर जा रहा हो तो अपने गुलामों को भेजकर उनपर हमला कराया जाये । यह कौन सा लोकतांत्रिक कृत्य है और यह कैसी लोकतंत्र में आस्था है ???? भाषा के संयम का ज्ञान दे रहे सो कॉल्ड लिबरल, बुद्धिजीवियों, राजवंश के गुलामों और राजवंश को अपने सभी पुराने बयानों का एकबार मूल्यांकन करना चाहिए कि उनकी भाषा , शैली , शब्द और वाक्य कितने मधुर थे जब वो दूसरों पर टिप्पणी करते हैं????
मगर शर्म उन्हें आती नहीं ।
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